సత్సంగత్వే నిస్సంగత్వం
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నిశ్చలతత్వే జీవన్ముక్తిః ||

Wednesday, July 30, 2014

मैं पल दो पल का शायर हूँ..


कल और आयेंगे नग्मों की खिलती कलियाँ चुननेवाले
मुझ से बेहतर कहनेवाले तुम से बेहतर सुननेवाले
कल कोई मुझको याद करे क्यों कोई मुझको याद करे
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बरबाद करे

పొద్దున్నే పదే పదే ఈ ప్వాక్యాలు గుర్తొస్తే పాట పెట్టుకుని విన్నా...कल कोई मुझको याद करे.. क्यों कोई मुझको याद करे.. मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बरबाद करे..:-) అద్భుతమైన కఠిన సత్యం కదా!! నేను...నేను..నేను.. అనుకునే పిచ్చివాడా... ఇదే జరిగేది.. ఇదే సత్యం అని ఎంత చక్కగా చెప్పారో...!!
కవి "సాహిర్" రాసిన అద్భుతమైన సాహిత్యాల్లో ఈ పాట ఒకటి...
పాట మొదట్లో వచ్చే వాక్యాలు.. ఆ పొడూగాటి చెట్లు అన్నీ అద్భుతమే నాకు..

చిత్రం: కభీ కభీ
పాడినది: ముఖేష్
 సాహిత్యం: సాహిర్ లుధియాన్వీ
సంగీతం: ఖయ్యాం

 


 సాహిత్యం:

मैं पल दो पल का शायर हूँ

पल दो पल मेरी कहानी हैं
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी हैं((ప))

मुझ से पहले कितने शायर आये और आकर चले गए

कुछ आहे भर कर लौट गए कुछ नग्में गा कर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे मैं भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुम से जुदा हो जाऊंगा वो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ ((ప))

कल और आयेंगे नग्मों की खिलती कलियाँ चुननेवाले

मुझ से बेहतर कहनेवाले तुम से बेहतर सुननेवाले
कल कोई मुझको याद करे क्यों कोई मुझको याद करे
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक्त अपना बरबाद करे((ప))


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