'97, '98 ప్రాంతంలో జగ్జీత్ సింగ్ స్వరపరిచి, అన్ని గజల్స్ పాడిన ఓ ఆల్బం "Silsilay". అందులోని ఆఖరిదైన " कभी यू भी तॊ हॊ.." గజల్ చాలా బావుంటుంది. ఈ ఆల్బంలోని అన్ని గజల్స్ కీ జావేద్ అఖ్తర్ సాహిత్యాన్ని అందించారు.
singer &composer : Jagjit singh
Lyrics: Javed akhtar
Album: Silsilay
कभी यू भी तॊ हॊ (2)
दरियां का साहिल हॊ
पूरॆ चांद की रात हॊ
और तुम आऒ..
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
परियॊं की मेह्फिल हॊ
कॊइ तुम्हारी बात हॊ
और तुम आऒ..
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
कभी यू भी तॊ हॊ
ऎ नरम मुलायम ठंडी हवाऎं,
जब घर सॆ तुम्हारॆ गुजरॆ
तुम्हारी खुष्बू चुराऎं..
मॆरॆ घर लॆ आऎं
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
सूनी हर मेह्फिल हॊ
कॊई ना मॆरॆ साथ हॊ
और तुम आऒ..
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
कभी यू भी तॊ हॊ
ऎ बादल ऐसा टूट्कॆ बरसॆ
मॆरॆ दिल की तरहा मिलनॆ कॊ
तुम्हारा दिल भी तरसॆ..
तुम निक्लॊ घर सॆ...
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
तन्हाई हॊ.. दिल हॊ..
बूंदॆ हॊ..बरसात हॊ...
और तुम आऒ..
कभी यू भी तॊ हॊ..(2)
ఈ ఆల్బం లోని అన్ని పాటలూ ఇక్కడ వినచ్చు:
http://www.smashits.com/silsilay-jagjit-singh-javed-akhtar/songs-5493.html